रविवार, 16 अगस्त 2015

शिव ही सर्वस्य - शिव ही सर्वस्य 

शिव ही सर्वस्य - शिव ही सर्वस्य 
शिव आदि देव है। वे महादेव हैं, सभी देवों में सर्वोच्च और महानतमें शिव को ऋग्वेद में रुद्र कहा गया है। पुराणों में उन्हें महादेव के रूप में स्वीकार किया गया है। श्वेता श्वतरोपनिषद् के अनुसार ‘सृष्टि के आदिकाल में जब सर्वत्र अंधकार ही अंधकार था। न दिन न रात्रि, न सत् न असत् तब केवल निर्विकार शिव (रुद्र) ही थे।’ शिव पुराण में इसी तथ्य को इन शब्दों में व्यक्त किया गया है -
‘एक एवं तदा रुद्रो न द्वितीयोऽस्नि कश्चन’ सृष्टि के आरम्भ में एक ही रुद्र देव विद्यमान रहते हैं, दूसरा कोई नहीं होता। वे ही इस जगत की सृष्टि करते हैं, इसकी रक्षा करते हैं और अंत में इसका संहार करते हैं। ‘रु’ का अर्थ है-दुःख तथा ‘द्र’ का अर्थ है-द्रवित करना या हटाना अर्थात् दुःख को हरने (हटाने) वाला। शिव की सत्ता सर्वव्यापी है। प्रत्येक व्यक्ति में आत्म-रूप में शिव का निवास है-
‘अहं शिवः शिवश्चार्य, त्वं चापि शिव एव हि।
सर्व शिवमयं ब्रह्म, शिवात्परं न किञचन।।
में शिव, तू शिव सब कुछ शिव मय है। शिव से परे कुछ भी नहीं है। इसीलिए कहा गया है- ‘शिवोदाता, शिवोभोक्ता शिवं सर्वमिदं जगत्।
शिव ही दाता हैं, शिव ही भोक्ता हैं। जो दिखाई पड़ रहा है यह सब शिव ही है। शिव का अर्थ है-जिसे सब चाहते हैं। सब चाहते हैं अखण्ड आनंद को। शिव का अर्थ है आनंद। शिव का अर्थ है-परम मेंगल, परम कल्याण।

शिव ही सर्वस्य - सामान्यतः ब्रहमा को सृष्टि का रचयिता, विष्णु को पालक और शिव को संहारक माना जाता है। परन्तु मूलतः शक्ति तो एक ही है, जो तीन अलग-अलग रूपों में अलग-अलग कार्य करती है। वह मूल शक्ति शिव ही हैं। स्कंद पुराण में कहा गया है-ब्रह्मा, विष्णु, शंकर (त्रिमूर्ति) की उत्पत्ति माहेश्वर अंश से ही होती है। मूल रूप में शिव ही कर्त्ता, भर्ता तथा हर्ता हैं। सृष्टि का आदि कारण शिव है। शिव ही ब्रह्म हैं। ब्रहम की परिभाषा है - ये भूत जिससे पैदा होते हैं, जन्म पाकर जिसके कारण जीवित रहते हैं और नाश होते हुए जिसमें प्रविष्ट हो जाते हैं, वही ब्रह्म है। यह परिभाषा शिव की परिभाषा है। ध्यान रहे जिसे हम शंकर कहते हैं - वह एक देवयोनि है जैसे ब्रहमा एवं विष्णु हैं। उसी प्रकार। शंकर शिव के ही अंश हैं। पार्वती, गणेश, कार्तिकेय आदि के परिवार वाले देवता का नाम शंकर है। शिव आदि तत्त्व है, वह ब्रह्म है, वह अखण्ड, अभेद्य, अच्छेद्य, निराकार, निर्गुण तत्त्व है। वह अपरिभाषेय है, वह नेति-नेति है।
शिव ही सर्वस्य - शिव ही सर्वस्य 
शिव आदि देव है। वे महादेव हैं, सभी देवों में सर्वोच्च और महानतमें शिव को ऋग्वेद में रुद्र कहा गया है। पुराणों में उन्हें महादेव के रूप में स्वीकार किया गया है। श्वेता श्वतरोपनिषद् के अनुसार ‘सृष्टि के आदिकाल में जब सर्वत्र अंधकार ही अंधकार था। न दिन न रात्रि, न सत् न असत् तब केवल निर्विकार शिव (रुद्र) ही थे।’ शिव पुराण में इसी तथ्य को इन शब्दों में व्यक्त किया गया है -
‘एक एवं तदा रुद्रो न द्वितीयोऽस्नि कश्चन’ सृष्टि के आरम्भ में एक ही रुद्र देव विद्यमान रहते हैं, दूसरा कोई नहीं होता। वे ही इस जगत की सृष्टि करते हैं, इसकी रक्षा करते हैं और अंत में इसका संहार करते हैं। ‘रु’ का अर्थ है-दुःख तथा ‘द्र’ का अर्थ है-द्रवित करना या हटाना अर्थात् दुःख को हरने (हटाने) वाला। शिव की सत्ता सर्वव्यापी है। प्रत्येक व्यक्ति में आत्म-रूप में शिव का निवास है-
‘अहं शिवः शिवश्चार्य, त्वं चापि शिव एव हि।
सर्व शिवमयं ब्रह्म, शिवात्परं न किञचन।।
में शिव, तू शिव सब कुछ शिव मय है। शिव से परे कुछ भी नहीं है। इसीलिए कहा गया है- ‘शिवोदाता, शिवोभोक्ता शिवं सर्वमिदं जगत्।
शिव ही दाता हैं, शिव ही भोक्ता हैं। जो दिखाई पड़ रहा है यह सब शिव ही है। शिव का अर्थ है-जिसे सब चाहते हैं। सब चाहते हैं अखण्ड आनंद को। शिव का अर्थ है आनंद। शिव का अर्थ है-परम मेंगल, परम कल्याण।
सामान्यतः ब्रहमा को सृष्टि का रचयिता, विष्णु को पालक और शिव को संहारक माना जाता है। परन्तु मूलतः शक्ति तो एक ही है, जो तीन अलग-अलग रूपों में अलग-अलग कार्य करती है। वह मूल शक्ति शिव ही हैं। स्कंद पुराण में कहा गया है-ब्रह्मा, विष्णु, शंकर (त्रिमूर्ति) की उत्पत्ति माहेश्वर अंश से ही होती है। मूल रूप में शिव ही कर्त्ता, भर्ता तथा हर्ता हैं। सृष्टि का आदि कारण शिव है। शिव ही ब्रह्म हैं। ब्रहम की परिभाषा है - ये भूत जिससे पैदा होते है और स्थित है और जिसमें लय होते है

1 टिप्पणी:

  1. कर्ता करे सो शिव करे शिव करे सो होय ! तीन लोक नो खंड मे शिव से बड़ा ना कोय !!
    🕉️🔱 जय भोलेनाथ 🕉️🔱🙏🙏

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