शुक्रवार, 31 जुलाई 2015

ये दुनियाँ ठीक वैसी है

ये दुनियाँ ठीक वैसी है जैसी आप इसे देखना चाहते हैं...

यहाँ पर किसी को गुलाबों में काँटे नजर आते हैं तो किसी को काँटों में गुलाब....

किसी को दो रातों के बीच एक दिन नजर आता है तो किसी को दो सुनहरे दिनों के बीच एक काली रात....

किसी को भगवान में पत्थर नजर आता है और किसी को पत्थर में भगवान...

किसी को साधु में भिखारी नजर आता है और किसी को भिखारी में भी साधु...

किसी को श्री कृष्ण में काला नजर आता है और किसी को काले में भी श्री कृष्ण...

किसी को मित्र में भी शत्रु नजर आता है और किसी को शत्रु में भी मित्र...

किसी को अपने भी पराये नजर आते हैं तो किसी को पराये भी अपने....

किसी को कमल में कीचड़ नजर आता है तो किसी को कीचड़ में कमल....

अगर आप चाहते हैं कि हर वस्तु आपके पसन्द की हो तो इसके लिए आपको अपनी दृष्टि बदलनी पड़ेगी क्योंकि प्रकृति के दृश्यों को चाहकर भी नहीं बदला जा सकता।

आप बस नजर मात्र बदलिए नजारे खुद-बखुद बदल जाएँगे।

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