मंगलवार, 16 जून 2015

शिव स्तवन

शिव स्तवन
दोहा
शंकर अभयंकर सुखद, प्रलयंकर परमेश।
गिरजावर कैलासघर, हिमगिरि रहण हमेश॥
छंद :त्रिभंगी
वसतौ गिरि हिम पर,अर गिरिजावर,तन बाघांबर , है धारी।
गळ राखत विषधर, भाल चंद्रधर,जटा गंगधर , त्रिपुरारी।
मन धरत उमंगधर जिणनै मुनिवर,देव दिगंबर, महादेवम्।
जय जय शिवशंकर, हे प्रलयंकर, सुंदर सुखकर, सत्य शिवम्॥1॥
नाचत नटराजम्, नवरस राजम् ,धूंधर बाजम्, छम छम छम।
जाणक घन गाजम्, झांझ पखाजम्, अजब अवाजम्, मिरदंगम्।
संग भूत समाजम्,वृषभ विराजम् गिरजाराजम् चितहरणम्।
जय जय शिव शंकर, हे प्रलयंकर, सुंदर सुखकर सत्य शिवम्॥2
शमशान रहावै,धूनि धखावै, जोग जगावै, नित प्रत हर।
डक डाक बजावै,भूत नचावै,  राख रमावै निज तन पर।
अठ सिध घर आवै, नव निधि पावै, जो जश गावै, पिता परम्।
जय जय शिव शंकर हे प्रलयंकर सुंदर सुख कर सत्य शिवम्॥3
हे वासी काशी, वेस सन्यासी, अज अविनाशी, सुख राशी।
सरिता-तट- वासी, गिरि आवासी ,अरक उजासी , मित भाषी।
काटै जम फांसी, विपद विनाशी,नव निधि दासी, निरमलतम्।
जय जय शिव शंकर हे प्रलयंकर सुंदर सुखकर सत्य शिवम्॥4
माळा उतबंगा,कंठ भूजंगा,नंग धडंगा, सिर गंगा।
शगति अरधंगा, पीवण भंगा,
हणण अनंगा, बिन खंगा।
उर भरण उमंगा,लहर तरंगा, मो मन रंगा, तव चरणम्।
जय जय शिव शंकर हे प्रलयंकर सुंदर सुखकर सत्य शिवम्॥5।
जय जय विषपायी, जन सुखदायी, मन सरलाई, महिमायी।
वांछित वर दाई, रहौ सहाई , पडतौ पाई, शरणाई।
कविजन कविताई,  जिण बिरदाई, यश अधिकाई, उण वधियम्
जय जय शिव शंकर, हे प्रलयंकर,  सुंदर सुखकर सत्य शिवम्॥6
कर धरण पिनाकम्, हाकं बाकम्, डम्म डमाकम्, डं डाकम्।
तौ सेव सदाकम्,वांछित पाकम्,सिर पर जाकम्, पति राकम्।
धरणि पर धाकम्, आप अथाकम्, धर फरसाकम्, पी गरलम्।
जय जय शिव शंकर,  हे प्रलयंकर, सुंदर सुखकर सत्य शिवम्॥7
दाहक पति रत्ती, जोगी जत्ती,संग शगत्ती, पारवती।
कर कविता कत्थी, जिम सुरसत्ती, दयी उकत्ती, आप  प्रती।
सुत नरपत वृत्ति, रहत चरण रति , औ ज विनत्ती, रख शरणम्।
जय जय शिव शंकर, हे प्रलयंकर, सुंदर सुख कर, सत्य शिवम्॥8
छप्पय
महादेव मदनान्त,पिनाकी जटी परसुधर।
धुर्जट धारण गंग, अंग भसमंग धरण हर।
त्र्यंबक अंब अरधंग, दिगंबर देव अघोरी।
कापालिक करुणेश,पति गिरि राज किशोरी।
नित नरपत नें निज जाण शिशु,  स्नेह सरित सरसावजो।
शिव आप तणौ शरणौ गह्यौ, दया द्रष्टि दरसावजो॥

नरपत आवड दान आशिया"वैतालिक"कृत

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें