रविवार, 12 जुलाई 2015

Waman avtar charitra

> जय श्रीकृष्ण <
>वामन चरित <
परमात्मा जब द्वार पर पधारते हैँ , तो तीन वस्तुएँ माँगते हैँ -
तीन कदम पृथ्वी अर्थात् जीवमात्र से तन,मन,और धन ।इन तीनोँ का भगवान को अर्पण करना चाहिए ।
तन से सेवा करने पर देहाभिमन नष्ट होता जायेगा और अहंकार समाप्त होगा । मनसे सेवा करने पर श्रम नहीँ करना पड़ेगा ।धन से सेवा करने पर धन की माया-ममता-मोह नष्ट होगा।तन,मन,धन से सेवा करने पर ही जीव और ब्रह्म का मिलन होता है ।
अतः इन तीनो से भगवान की सेवा करनी चाहिए ।सभी वस्तुएँ भगवान की है-
"ईशावस्यमिदं जगत्"
उन्हेँ ही अर्पित करनी चाहिए । उन्हीँ का दिया हुआउन्हे देना है-
"त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये "
जो व्यक्ति बलि की भाँति तन,मन,एवं धन भगवान को अर्पित करता है , भगवान उसके द्वारपाल बनते हैँ अर्थात् प्रत्येक इन्द्रियके दरवाजे पर खड़े रहकर नारायण भगवान उसकी रक्षा करते हैँ ।और इन्द्रिय मार्ग से काम का प्रवेश नहीँ हो पाता ।
तीन चरण पृथ्वी का एक अर्थ है -- सत,रज,एवं तम - इन तीन गुणोँ को भगवान को अर्पित करना चाहिए । शरीर से सेवा करने तमोगुण घटता है ।ईश्वरसेवा मेँ धन का उपयोग करने से रजोगुण कम होगा । यदि तन और धन दिया जाय तथा मन न दिया जाय तो प्रभु प्रसन्न नहीँ होते ।अतः
सत्वगुण के क्षय हेतु मन सेभी प्रभु की सेवा करनी चाहिए । मन विषयोँ मेँ और तन ठाकुर जी के पास होगा, तोईश्वर को आनन्द नहीँ आयेगा । सेवा करते समय यदि आँखो मेँ आँसू आ जायँ तो समझना चाहिए कि ठाकुर जी ने कृपा की है ।ज्ञानी व्यक्ति ईश्वर के साथ शरीर से नही , मन से सम्बन्ध जोड़ता है ।
समर्पणकर्ता को अपने आपको भी समर्पण करना चाहिए ।
सब करने के बाद भी यह मानना चाहिए कि हमने कुछ भी नहीँ किया -
"मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन "

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