गुरुवार, 16 अप्रैल 2015

उत्तम जन सों मिलत ही


उत्तम जन सों मिलत ही, अवगुन हूं गुन होय। घन संग रतनाकर मिली, बरसै मीठौ तोय।।
भावार्थ
उत्तम अर्थात सज्जन  पुरुष  से  मिलते ही अवगुण भी गुण में बदल जाते है जिस प्रकार खारा समुन्द्र बादल से मिलने पर अपना खारापन छोङकर मीठा जल बन जाता है इसलिए  जीवन में सदैव सज्जनों का ही संग रखना चाहिये।

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