शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

श्री वल्लभाचार्यजी के स्तोत्र

मधुराष्टकं की रचना पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक और महान वैश्न्वाचार्य श्री वल्लभाचार्यजी ने की थी।
यह एक अत्यन्त सुंदर स्तोत्र है, जिसमें मधुरापति भगवान् कृष्ण के सरस और सर्वांग सुंदर रूप और भावों का वर्णन है। मधुराष्टकं मूल रूप से संस्कृत में रचित है।

मधुराष्टकं में आठ पद हैं और हर पद में मधुरं शब्द का आठ बार प्रयोग किया गया है।

ऐसा स्वाभाविक भी है क्योंकि कृष्ण साक्षात् माधुर्य और मधुरापति हैं।

किसी भक्त ने कहा है कि यदि मेरे समक्ष अमृत और श्रीकृष्ण का माधुर्य रूप हो तो मैं श्रीकृष्ण का माधुर्य रूप ही चाहूँगा, क्योंकि अमृत तो एक बार पान करने से समाप्त हो जाएगा लेकिन भगवान् का माधुर्य रूप तो निरंतर बढ़ता ही जाएगा। भगवान् के माधुर्य रूप की ऐसी महिमा है।

अधरं मधुरं वदनं मधुरं, नयनं मधुरं हसितं मधुरं।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं॥१॥

वचनं मधुरं चरितं मधुरं, वसनं मधुरं वलितं मधुरं ।
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं॥२॥

वेणुर्मधुरो रेनुर्मधुरः, पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं॥३॥

गीतं मधुरं पीतं मधुरं, भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरं।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं॥४॥

करणं मधुरं तरणं मधुरं, हरणं मधुरं रमणं मधुरं।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं, मधुराधिपते रखिलंमधुरं॥५॥

गुंजा मधुरा माला मधुरा, यमुना मधुरा वीचीर्मधुरा।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं॥६॥

गोपी मधुरा लीला मधुरा, युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरं।
दृष्टं मधुरं सृष्टं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं॥७॥

गोपा मधुरा गावो मधुरा, यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा।
दलितं मधुरं फ़लितं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं॥८॥

भावार्थ :- आपके होंठ मधुर हैं, आपका मुख मधुर है, आपकी ऑंखें मधुर हैं, आपकी मुस्कान मधुर है, आपका हृदय मधुर है, आपकी चाल मधुर है, मधुरता के ईश श्रीकृष्ण आपका सब कुछ मधुर है॥१॥

आपका बोलना मधुर है, आपके चरित्र मधुर हैं, आपके वस्त्र मधुर हैं, आपका तिरछा खड़ा होना मधुर है, आपका चलना मधुर है, आपका घूमना मधुर है, मधुरता के ईश श्रीकृष्ण आपका सब कुछ मधुर है॥२॥

आपकी बांसुरी मधुर है, आपके लगाये हुए पुष्पमधुर हैं, आपके हाथ मधुर हैं, आपके चरण मधुर हैं, आपका नृत्य मधुर है, आपकी मित्रता मधुर है, मधुरता के ईश श्रीकृष्ण आपका सब कुछ मधुर है॥३॥

आपके गीत मधुर हैं, आपका पीना मधुर है, आपका खाना मधुर है, आपका सोना मधुर है, आपका रूप मधुर है, आपका टीका मधुर है. मधुरता के ईश श्रीकृष्ण आपका सब कुछ मधुर है॥४॥

आपके कार्य मधुर हैं, आपका तैरना मधुर है, आपका चोरी करना मधुर है, आपका प्यार करना मधुर है, आपके शब्द मधुर हैं, आपका शांत रहना मधुर है, मधुरता के ईश श्रीकृष्ण आपका सब कुछ मधुर है॥५॥

आपकी घुंघची मधुर है, आपकी माला मधुर है, आपकी यमुना मधुर है, उसकी लहरें मधुर हैं, उसका पानी मधुर है, उसके कमल मधुर हैं, मधुरता के ईश श्रीकृष्ण आपका सब कुछ मधुर है॥६॥

आपकी गोपियाँ मधुर हैं, आपकी लीला मधुर है,आप उनके साथ मधुर हैं, आप उनके बिना मधुर हैं,आपका देखना मधुर है, आपकी शिष्टता मधुर है, मधुरता के ईश श्रीकृष्ण आपका सब कुछ मधुर है॥७॥

आपके गोप मधुर हैं,आपकी गायें मधुर हैं, आपकी छड़ी मधुर है, आपकी सृष्टि मधुर है, आपका विनाश करना मधुर है, आपका वर देना मधुर है, मधुरता के ईश श्रीकृष्ण आपका सब कुछ मधुर है॥८॥

            जय श्री कृष्ण

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