शुक्रवार, 1 मई 2015

आगम पंथ है प्रेम को


आगम पंथ है प्रेम को, जहं ठकुराई नाही।
गोपिन के पीछे फिरे, त्रिभुवन पति बन माहि।।
भावार्थ
प्रेम का पथ बङा कठिन है उस पर तो किसी का भी शासन नहीं चलता है प्रेम के वशीभूत हो जाने पर व्यक्ति के हाथ में कुछ भी नहीं रहता है जिस प्रकार त्रिलोकी नाथ श्री कृष्ण प्रेम के
वश में होकर वन वन गोपियों के
पीछे घूमते रहते थे

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें