गुरुवार, 19 मार्च 2015

स्वारथ के सबहीं सग- दोहा अर्थ सहित


स्वारथ के सबहीं सगे, बिन स्वारथ कोउ नाहि।
सेवे पंछी सरस तरू निरस
भये उङ जाहि।।
भावार्थ
जब तक स्वार्थ सधता रहा है
सभी सगे संबंधी हमारे बने रहते हैं परन्तु बिना स्वार्थ तो अपने भी पराये बन जाते है जिस प्रकार वृक्ष जब तक रसदार हो पंछी उनका सेवन करते हैं नीरस होते ही अन्यत्र प्रस्थान कर जाते हैं 

चिंता विघन विनाशनी, कमलाशनी सगत ।
बीस हथी हंस वाहिनी, माता देहू सुमत।।

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