जिन्दगी गुजर जाती है
एक मकान बनाने में।
और
कुदरत उफ़ तक नहीं करती बस्तियाँ गिराने में।
ना उजाड़ ए - खुदा किसी के आशियाने को,
वक़्त बहुत लगता है, एक छोटा सा घर बनाने को...!!
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जिन्दगी गुजर जाती है
एक मकान बनाने में।
और
कुदरत उफ़ तक नहीं करती बस्तियाँ गिराने में।
ना उजाड़ ए - खुदा किसी के आशियाने को,
वक़्त बहुत लगता है, एक छोटा सा घर बनाने को...!!
आप न काहू काम के, डार पात फल फूल।
औरन को रोकत फिरै, रहिमन पेङ बबूल।।
भावार्थ
रहीम कहते हैं कि जगत में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो न तो स्वयं कुछ करते हैं और न दुसरों को कर्म करने देते हैं वे उस बबूल के वृक्ष के समान है जिसके न तो पत्ते काम के न फूल व डाल किसी काम आते हैं उल्टे उनके काँटे दूसरों के कार्य में भी बाधा उत्पन्न करने का काम करते हैं
गुरू से शिष्य ने कहा: गुरूदेव ! एक व्यक्ति ने
आश्रम के लिये गाय भेंट की है।
गुरू ने कहा - अच्छा हुआ । दूध पीने को मिलेगा।
एक सप्ताह बाद शिष्य ने आकर गुरू से कहा: गुरू !
जिस व्यक्ति ने गाय दी थी, आज वह अपनी गाय
वापिस ले गया ।
गुरू ने कहा - अच्छा हुआ ! गोबर उठाने की झंझट
से मुक्ति मिली।
'परिस्थिति' बदले तो अपनी 'मनस्थिति' बदल लो ।
बस दुख सुख में बदल जायेगा.।
"सुख दुख आख़िर दोनों
मन के ही तो समीकरण हैं।"
रहिमन याचकता गहे, बङे छोट ह्वै जात।
नारायण हू को भयो, बावन आँगुर गात।।
भावार्थ
रहीम कहते है कि चाहे कोई कितना भी बङा क्युं न हो दूसरों के आगे याचना करने अर्थात मांगने पर वह उसी प्रकार छोटा हो जाता है जिस प्रकार स्वयं श्री हरि वामन रूप धर बली राजा की याचना करने पर उन्हें भी बावन आँगुर का रूप धारण करना पड़ा।
मुश्किलें जरुर है, मगर ठहरा नही हूँ मैं.
मंज़िल से जरा कह दो, अभी पहुंचा नही हूँ मैं.
कदमो को बाँध न पाएंगी, मुसीबत कि जंजीरें,
रास्तों से जरा कह दो, अभी भटका नही हूँ मैं.
सब्र का बाँध टूटेगा, तो फ़ना कर के रख दूंगा,
दुश्मन से जरा कह दो, अभी गरजा नही हूँ मैं.
दिल में छुपा के रखी है, लड़कपन कि चाहतें,
मोहब्बत से जरा कह दो, अभी बदला नही हूँ मैं.
” साथ चलता है, दुआओ का काफिला,
किस्मत से जरा कह दो, अभी तनहा नही हूँ मैं.
हारना तब आवश्यक हो जाता है जब
लङाई "अपनों से हो".!.
....और....
जीतना तब आवश्यक हो जाता है जब
लङाई "अपने आप से हो"
मंजिल मिले ना मिले
ये तो मुकदर की बात है.!.
हम कोशिश भी ना करे
ये तो गलत बात है.
हार और जीत तो हमारी सोंच पर निर्भर है, मान लिया तो हार है,
ठान लिया तो जीत है,
कोशिशे तो मन सम्झाती है
जीत तो ज़िद ही दिलाती है...
"समय की किंमत पेपर से पूछो जो सुबह चाय के साथ होता है वही रात् को रद्दी हो जाता है"
ज़िन्दगी मे जो भी हासिल करना हो...
उसे वक्त पर हासिल करो.....
क्योंकि.....
ज़िन्दगी मौके कम
और.....
धोखे ज्यादा देती हे ...
माला तो कर मे फिरे, जीभि फिरे मुख माहि।
मनुवा तो दसुं दिसी फिरे, यह तो सुमिरन नाहि।।
भावार्थ
रहीम कहते है कि भगवत स्मरण करते समय व्यक्ति हाथ
में माला के मनके फेरता है परन्तुु उसका मन तो दसों दिशाओं में फिरता है अर्थात प्रभु स्मरण के समय भी मन सांसारिक कार्यों में लगा रहता है
रहिमन वे नर धन्य है, पर उपकारी अंग।
बांटन वारे को लगे, ज्युं मेंहदी को रंग।।
भावार्थ
रहीम कहते है कि वह लोग इस संसार में स्तुत्य जिनका शरीर
दूसरों के कल्याण अर्थात परोपकार में लगा है जिस प्रकार मेंहदी पीसते पीसते भी बांटने वाले के हाथों को रंग देती है
" जीवन में तीन लोगों को कभी नहीं भूलना चाहिये...
मुसीबत में साथ देने वाले को...
मुसीबत में साथ छोड़ने वाले को...
और...
मुसीबत में डालने वाले को..
♻
- आशाएं ऐसी हो जो-
मंज़िल तक ले जाएँ,
मंज़िल ऐसी हो जो-
जीवन जीना सीखा दे,
जीवन ऐसा हो जो-
संबंधों की कदर करे,
और संबंध ऐसे हो जो-
याद करने को मजबूर करदे
- आशाएं ऐसी हो जो-
मंज़िल तक ले जाएँ,
मंज़िल ऐसी हो जो-
जीवन जीना सीखा दे,
जीवन ऐसा हो जो-
संबंधों की कदर करे,
और संबंध ऐसे हो जो-
याद करने को मजबूर करदे
किसी ने क्या खूब लिखा है.....
''छोटी छोटी बातें दिल में रखने से
बड़े बड़े रिश्ते कमजोर हो जाते हैं"
कभी पीठ पीछे आपकी बात चले
तो घबराना मत ...
बात तो "उन्हीं की होती है"..
जिनमें कोई " बात " होती है
निंदा उसीकी होती हे जो जिंदा हैँ
मरने के बाद तो सिर्फ तारीफ होती है
☝
मैने जिन्दगी से पूछा ;तुम इतनी कठिन क्यू हो?
उसने हॅस कर कहा ,
आसान चीजो की लोग परवाह नही करते !!!!
किसी ने बर्फ से पुछा की,
आप इतने ठंडे क्युं हो ?
बर्फ ने बडा अच्छा जवाब दिया :-
" मेरा अतीत भी पानी;
मेरा भविष्य भी पानी..."
फिर गरमी किस बात पे रखु ??
जो जैसे तिहि तेसिये, करिये नीति प्रकास।
काठ कठिन भेदे भ्रमर, मृदु अरविंद निवास।।
भावार्थ
नीति कहती है जो आदमी जैसा
है उसके साथ वैसा ही व्यवहार किया जाए। जिस प्रकार भौंरा पेङ की कठिन काठ तो छेद देता है किंतु कोमल कमल में अत्यंत शालीनता से निवास करता है।
ू
"मौका" जितना छोटा शब्द है,
उतनी ही देर के लिये आता है.....!
आने की दस्तक तो दूर,
जाते हुऐ दरवाजा भी नहीं खटखटाता है.....!
*
*
*
रात सुबह का इन्तजार नहीं करती,
खुशबु मौसम का इन्तजार नहीं करती,
जो भी खुशी से मिले उसका आनन्द लिया करो,
क्योंकी जिन्दगी वक्त का इन्तजार नहीं करती.....!
मधुराष्टकं की रचना पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक और महान वैश्न्वाचार्य श्री वल्लभाचार्यजी ने की थी।
यह एक अत्यन्त सुंदर स्तोत्र है, जिसमें मधुरापति भगवान् कृष्ण के सरस और सर्वांग सुंदर रूप और भावों का वर्णन है। मधुराष्टकं मूल रूप से संस्कृत में रचित है।
मधुराष्टकं में आठ पद हैं और हर पद में मधुरं शब्द का आठ बार प्रयोग किया गया है।
ऐसा स्वाभाविक भी है क्योंकि कृष्ण साक्षात् माधुर्य और मधुरापति हैं।
किसी भक्त ने कहा है कि यदि मेरे समक्ष अमृत और श्रीकृष्ण का माधुर्य रूप हो तो मैं श्रीकृष्ण का माधुर्य रूप ही चाहूँगा, क्योंकि अमृत तो एक बार पान करने से समाप्त हो जाएगा लेकिन भगवान् का माधुर्य रूप तो निरंतर बढ़ता ही जाएगा। भगवान् के माधुर्य रूप की ऐसी महिमा है।
अधरं मधुरं वदनं मधुरं, नयनं मधुरं हसितं मधुरं।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं॥१॥
वचनं मधुरं चरितं मधुरं, वसनं मधुरं वलितं मधुरं ।
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं॥२॥
वेणुर्मधुरो रेनुर्मधुरः, पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं॥३॥
गीतं मधुरं पीतं मधुरं, भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरं।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं॥४॥
करणं मधुरं तरणं मधुरं, हरणं मधुरं रमणं मधुरं।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं, मधुराधिपते रखिलंमधुरं॥५॥
गुंजा मधुरा माला मधुरा, यमुना मधुरा वीचीर्मधुरा।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं॥६॥
गोपी मधुरा लीला मधुरा, युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरं।
दृष्टं मधुरं सृष्टं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं॥७॥
गोपा मधुरा गावो मधुरा, यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा।
दलितं मधुरं फ़लितं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं॥८॥
भावार्थ :- आपके होंठ मधुर हैं, आपका मुख मधुर है, आपकी ऑंखें मधुर हैं, आपकी मुस्कान मधुर है, आपका हृदय मधुर है, आपकी चाल मधुर है, मधुरता के ईश श्रीकृष्ण आपका सब कुछ मधुर है॥१॥
आपका बोलना मधुर है, आपके चरित्र मधुर हैं, आपके वस्त्र मधुर हैं, आपका तिरछा खड़ा होना मधुर है, आपका चलना मधुर है, आपका घूमना मधुर है, मधुरता के ईश श्रीकृष्ण आपका सब कुछ मधुर है॥२॥
आपकी बांसुरी मधुर है, आपके लगाये हुए पुष्पमधुर हैं, आपके हाथ मधुर हैं, आपके चरण मधुर हैं, आपका नृत्य मधुर है, आपकी मित्रता मधुर है, मधुरता के ईश श्रीकृष्ण आपका सब कुछ मधुर है॥३॥
आपके गीत मधुर हैं, आपका पीना मधुर है, आपका खाना मधुर है, आपका सोना मधुर है, आपका रूप मधुर है, आपका टीका मधुर है. मधुरता के ईश श्रीकृष्ण आपका सब कुछ मधुर है॥४॥
आपके कार्य मधुर हैं, आपका तैरना मधुर है, आपका चोरी करना मधुर है, आपका प्यार करना मधुर है, आपके शब्द मधुर हैं, आपका शांत रहना मधुर है, मधुरता के ईश श्रीकृष्ण आपका सब कुछ मधुर है॥५॥
आपकी घुंघची मधुर है, आपकी माला मधुर है, आपकी यमुना मधुर है, उसकी लहरें मधुर हैं, उसका पानी मधुर है, उसके कमल मधुर हैं, मधुरता के ईश श्रीकृष्ण आपका सब कुछ मधुर है॥६॥
आपकी गोपियाँ मधुर हैं, आपकी लीला मधुर है,आप उनके साथ मधुर हैं, आप उनके बिना मधुर हैं,आपका देखना मधुर है, आपकी शिष्टता मधुर है, मधुरता के ईश श्रीकृष्ण आपका सब कुछ मधुर है॥७॥
आपके गोप मधुर हैं,आपकी गायें मधुर हैं, आपकी छड़ी मधुर है, आपकी सृष्टि मधुर है, आपका विनाश करना मधुर है, आपका वर देना मधुर है, मधुरता के ईश श्रीकृष्ण आपका सब कुछ मधुर है॥८॥
जय श्री कृष्ण
उत्तम जन सों मिलत ही, अवगुन हूं गुन होय। घन संग रतनाकर मिली, बरसै मीठौ तोय।।
भावार्थ
उत्तम अर्थात सज्जन पुरुष से मिलते ही अवगुण भी गुण में बदल जाते है जिस प्रकार खारा समुन्द्र बादल से मिलने पर अपना खारापन छोङकर मीठा जल बन जाता है इसलिए जीवन में सदैव सज्जनों का ही संग रखना चाहिये।
मोह में हम बुराईयाँ नहीं
देख पाते है
और घृणा में हम अच्छाइयाँ नही
देख पाते है।
"नाम" और "बदनाम" में क्या फर्क है ?
"नाम" खुद कमाना पड़ता है , और "बदनामी" लोग आपको कमा के देते हैं।
इन्सान "समझदार" तब नहीँ होता, जब वह बड़ी - बड़ी बातेँ करने लगता हैं..
बल्कि,
वह "समझदार" तब होता हैं, जब वो छोटी - छोटी बातेँ समझने लगता हैं...
जिंदगी ने मेरे मर्ज़
का एक बढ़िया
इलाज़ बताया...
वक्त को दवा कहा
और ख्वाहिशों का
परहेज बताया..!!!
सुनिये सबही की कही, करिये सहित विचार।
सरबलोक राजी रहै, सो कीजैै उपचार।।
भावार्थ
यदि कोई हमें परामर्श दे तो उसे सुनने में कोई हानि नहीं होती अतः अवश्य सुनना चाहिये परन्तु करना अपने विवेक के अनुसार ही चाहिये हमारा प्रयास ऐसा हो कि सभी लोग हमारे आचरण से प्रसन्न रहें।
कुछ सुंदर पंक्तियाँ...
किसी की मजबूरियाँ पे न हँसिये,
कोई मजबूरियाँ ख़रीद कर नहीं लाता..!
डरिये वक़्त की मार से,
बुरा वक़्त किसीको बताकर नही आता..!
अकल कितनी भी तेज ह़ो,
नसीब के बिना नही जीत सकती..!
बिरबल अकलमंद होने के बावजूद,
कभी बादशाह नही बन सका..
ना तुम अपने आप को गले लगा सकते हो, ना ही तुम अपने कंधे पर सर रखकर रो सकते हो..एक दूसरे के लिये जीने का नाम ही जिंदगी है..! इसलिये वक़्त उन्हें दो जो तुम्हे चाहते हों दिल से.. रिश्ते पैसो के मोहताज़ नहीं होते क्योंकि कुछ रिश्ते मुनाफा नहीं देते पर जीवन अमीर जरूर बना देते है.... !!
मीठा शहद बनाने वाली मधुमक्खी
भी डंख मारने से नहीं चुकती
इसलिए होंशियार रहें…
बहुत मीठा बोलने वाले भी
‘हनी’ नहीं ‘हानि’ दे सकते है
रहिमन छोटे नरन से, होत बङो नहीं काम।
मढो नगाङो ना बने, सौ चूहे के चाम।।
भावार्थ
छोटी सोच व संकीर्ण प्रवृति के लोगोंसे बङे काम की अपेक्षा नहीं की जा सकती है जिस प्रकार भले ही सौ चूहों की खाल ले लो उससे नगाङा नहीं बनाया जा सकता है।
अगर इन्सान की पहचान करनी है तो
सुरत से नहीं, सिरत से करो
क्योंकि सोना अक्सर लोहे की तिजोरी मे ही
रखा जाता है ,
"जन्म अपने हाथ में नहीं, मरना अपने हाथ में नहीं..
पर जीवन को अपने तरीके से जीना अपने हाथ में होता है..
मस्त रहो मुस्कुराते रहो, सबके दिलों में जगह बनाते रहो.."
सीप गयो मुक्ता भयो, कदली भयो कपूर।
अहि फन गयो तो विष भयो, संगति को फल सूर।।
भावार्थ
सूरदास संगती के प्रभाव को लक्ष्य कर कहते है हम जैसी संगती में बैढते है उसका प्रभाव हमारे संस्कारों पर अवश्यंभावी है जैसे स्वाती की बूंदे सीप के सम्पर्क से मोती कदली से कपूर तो विषधर के साथ से जहर बन जाती है
स्वर्ग में सब कुछ है लेकिन मौत नहीं है,
गीता में सब कुछ है लेकिन झूठ नहीं है,
दुनिया में सब कुछ है लेकिन किसी को सुकून नहीं है,
और
आज के इंसान में सब कुछ है लेकिन सब्र नहीं
Kisi ne kya khoob kaha hai :
ना खुशी खरीद पाता हू ना ही गम बेच पाता हू फिर भी मै ना जाने क्यु हर रोज कमाने जाता हू....
जीवन मंत्र
"नल बंद करने से नल बंद होता है!
"पानी नहीं!
"घड़ी बंद करने से घड़ी बंद होती है!
"समय नहीं!
"दीपक बुझाने से दीपक बुझाता है!
"रौशनी नहीं!
"झूट छुपाने से झूट छुपता है!
"सच नहीं!
"प्रेम करने से प्रेम मिलता है!
"नफरत नहीं!
"दान करने से अमीरी मिलती है!
"गरीबी नहीं!
लकीरें भी बड़ी अजीब होती हैं------
माथे पर खिंच जाएँ तो किस्मत बना देती है
ं
जमीन पर खिंच जाएँ तो सरहदें बना देती है
ं
खाल पर खिंच जाएँ तो खून ही निकाल देती है
ं
और रिश्तों पर खिंच जाये तो दिवार बना देती है
जिंदगी में हमें दो लक्ष्य रखने चाहिए:
प्रथम वो हासिल करें जो चाहते हैं,
एवं दूसरे जो हासिल किया है उसका आनंद लेना।
प्रायः हम दूसरे लक्ष्य को अमल मेँ लाना भूल जाते हैं।
शुभ दिन हो...
आपके पास मारुति हो या बीएमडब्ल्यू, रोड वही रहेगी.
आप इकॉनामी क्लास में सफर करे या बिज़नस क्लास में, आपका गंतव्य नहीं बदलेगा.
आप टाइटन पहने या रोलेक्स, समय वही रहेगा.
आपके पास एप्पल हो, सैमसंग या नोकिया, आपको कॉल लगाने वाले लोग नहीं बदलेंगे
भव्य ! जीवन की लालसा रखने या जीने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन सावधान रहें, ताकि जरूरत का स्थान लालच कभी न ले पाये..क्योंकि जरूरते पूरी हो सकती हैं, तृष्णा नहीं !
छिपकलीयों का हुनर
तो देखो साहब...
बड़ी होशियारी से रात के अँधेरे में,
मोटे मोटे कीड़ो को हज़म कर लेती है...
और सुबह होते ही......
अपने गुनाहों को छिपाने के लिए,
किसी बड़े नेता या समाज सेवी
की तस्वीर के पीछे
छिप जाती है...
धीर-वीर, रक्षक प्रबल, बलशाली-हनुमान।
जिनके हृदय-अलिन्द में, रचे-बसे श्रीराम।।
--महासिन्धु को लाँघकर, नष्ट किये वन-बाग।
असुरों को आहत किया, लंका मे दी आग।।
--कभी न टाला राम का, जिसने था आदेश।
सीता माता को दिया, रघुवर का सन्देश।।
--लछमन को शक्ति लगी, शोकाकुल थे राम।
पवन वेग की चाल से, पहुँचे पर्वत धाम।।
--संजीवन के शैल को, उठा लिया तत्काल।
बूटी खा जीवित हुए, दशरथ जी के लाल।।--
बिगड़े काम बनाइए, बनकर कृपा निधान।
कोटि-कोटि वन्दन तुम्हे, पवनपुत्र हनुमान।।
स्वर्ग का सपना छोड़ दो,
नर्क का डर छोड़ दो,
कौन जाने क्या पाप ,
क्या पुण्य,
बस...
किसी का दिल न दुखे
अपने स्वार्थ के लिए,
बाकी सब कुदरत पर छोड़ दो।
ओम् शांति
आपके पास मारुति हो या बीएमडब्ल्यू, रोड वही रहेगी.
आप इकॉनामी क्लास में सफर करे या बिज़नस क्लास में, आपका गंतव्य नहीं बदलेगा.
आप टाइटन पहने या रोलेक्स, समय वही रहेगा.
आपके पास एप्पल हो, सैमसंग या नोकिया, आपको कॉल लगाने वाले लोग नहीं बदलेंगे
भव्य ! जीवन की लालसा रखने या जीने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन सावधान रहें, ताकि जरूरत का स्थान लालच कभी न ले पाये..क्योंकि जरूरते पूरी हो सकती हैं, तृष्णा नहीं !
1.जितना कमाएँ उससे कम खर्च हो ऐसी जिन्दगी बनायें
2. दिन में कम से कम 3 लोगो की प्रशंसा करें
3. खुद की भूल स्वीकारने में कभी भी संकोच न करें
4. किसी के सपनो पर कभी भी न हंसे
5. अपने पीछे खडे व्यक्ति को भी कभी आगे जाने का मौका दें
6. रोज उदय होते सुरज को अवश्य देखें
7. खूब जरुरी हो तभी कोई चीज उधार लें
8. किसी से कुछ जानना हो तो, विवेक से दो बार पूछें
9. कर्ज और शत्रु को कभी बडा मत होने दें
10. ईश्वर पर अटूट भरोसा रखें
11. प्रार्थना करना कभी मत भूलें, प्रार्थना में अपार शक्ति होती है
12. हमेशा अपने काम से मतलब रखें
13. समय सबसे ज्यादा कीमती है, इसको फालतु कामो में खर्च ना करें
14. जो आपके पास है, उसी में खुश रहना सीखें
15. बुराई कभी भी किसी की भी मत करें, क्योंकि बुराई नाव में छेद समान है, छेद छोटा हो या बड़ा नाव को डुबा ही देता है
16. हमेशा सकारात्मक सोच रखें
17. हर व्यक्ति एक हुनर लेकर पैदा होता हैं, बस उस हुनर को दुनिया के सामने लाएं
18. कोई काम छोटा नही होता, हर काम बडा होता है
19. सफलता उनको ही मिलती है जो कुछ कोशिश करते हैं
20. कुछ पाने के लिए कुछ खोना नहीं बल्कि कुछ पुरुषार्थ करना पडता है
वक़्त से लड़ कर अपना नसीब बदल दे;
इंसान वही जो अपनी तक़दीर बदल दे;
कल क्या होगा उसकी कभी ना सोचो;
क्या पता कल वक़्त खुद अपनी लकीर बदल दे।......
कबहुं कुसंग न कीजिये, किये प्रकृति की हानि।
गूंगे को समझाइयो, गूंगे की गति आनि।।
भावार्थ
बुरी संगत कभी भी नहीं करनी चाहिये क्योंकि इससे मनुष्य का
स्वभाव बिगङ जाता है जिस प्रकार गूंगे को अपनी बात समझाने के लिये स्वयं गूंगा बन जाना पङता है उसी तरह बुरे लोगों की संगती के लिये बुरा बनना ही पङता है
भक्ति जब भोजन में प्रवेश करती है,
भोजन 'प्रसाद' बन जाता है।
भक्ति जब भूख में प्रवेश करती है,
भूख 'व्रत' बन जाती है।
भक्ति जब पानी में प्रवेश करती है,
पानी 'चरणामृत' बन जाता है।
भक्ति जब सफर में प्रवेश करती है,
सफर 'तीर्थयात्रा' बन जाता है।
भक्ति जब संगीत में प्रवेश करती है,
संगीत 'कीर्तन' बन जाता है।
भक्ति जब घर में प्रवेश करती है,
घर 'मन्दिर' बन जाता है।
भक्ति जब कार्य में प्रवेश करती है,
कार्य 'कर्म' बन जाता है।
भक्ति जब क्रिया में प्रवेश करती है,
क्रिया 'सेवा' बन जाती है।
और...
भक्ति जब व्यक्ति में प्रवेश करती है,
व्यक्ति 'मानव' बन जाता है।
शब्दों के दांत नहीं होते है
लेकिन शब्द जब काटते है
तो दर्द बहुत होता है
और
कभी कभी घाव इतने गहरे हो जाते है की
जीवन समाप्त हो जाता है
परन्तु घाव नहीं भरते.............
इसलिए जीवन में जब भी बोलो मीठा बोलो मधुर बोलों
'शब्द' 'शब्द' सब कोई कहे,
'शब्द' के हाथ न पांव;
एक 'शब्द' 'औषधि" करे,
और एक 'शब्द' करे 'सौ' 'घाव"...!
"जो 'भाग्य' में है वह भाग कर आएगा..,
जो नहीं है वह आकर भी भाग 'जाएगा"..!
प्रभू' को भी पसंद नहीं
'सख्ती' 'बयान' में,
इसी लिए 'हड्डी' नहीं दी, 'जबान' में...!
जब भी अपनी शख्शियत पर अहंकार हो,
एक फेरा शमशान का जरुर लगा लेना।
और....
जब भी अपने परमात्मा से प्यार हो,
किसी भूखे को अपने हाथों से खिला देना।
जब भी अपनी ताक़त पर गुरुर हो,
एक फेरा वृद्धा आश्रम का लगा लेना।
और….
जब भी आपका सिर श्रद्धा से झुका हो,
अपने माँ बाप के पैर जरूर दबा देना।
जीभ जन्म से होती है और मृत्यु तक रहती है क्योकि वो कोमल होती है.
दाँत जन्म के बाद में आते है और मृत्यु से पहले चले जाते हैं...
क्योकि वो कठोर होते है।
छोटा बनके रहोगे तो मिलेगी हर
बड़ी रहमत...
बड़ा होने पर तो माँ भी गोद से उतार
देती है..
किस्मत और पत्नी
भले ही परेशान करती है लेकिन
जब साथ देती हैं तो
ज़िन्दगी बदल देती हैं.।।
"प्रेम चाहिये तो समर्पण खर्च करना होगा।
विश्वास चाहिये तो निष्ठा खर्च करनी होगी।
साथ चाहिये तो समय खर्च करना होगा।
किसने कहा रिश्ते मुफ्त मिलते हैं ।
मुफ्त तो हवा भी नहीं मिलती ।
एक साँस भी तब आती है,
जब एक साँस छोड़ी जाती है!!"
मोती फाट्यो बींदतां, मन फाट्यो
एक बोल।
मोती फेर मगावसां, मनङो मिले न मोल।।
भावार्थ
मुक्तामणि में गूंथते समय मोती
तो पिरोये जाने से फट जाता है परन्तु मन तो केवल एक कटु
बोल से ही तार तार हो जाता है
मोती तो फटने पर हम दूसरा भी
खरीद ला सकते हैं मगर कङवे बोल से टूटा हूआ मन मोल नहीं
मिलता है अर्थात एक बार किसी
की कही बात पर मन टूट गया तो फिर उसका कोई उपचार शेंष
नहीं रहता। अतः हमें कङवे वचन कहने से बचना चाहिये।
एक कुम्हार माटी से चिलम बनाने जा रहा था।
उसने चिलम का आकर दिया।थोड़ी देर में उसने
चिलम को बिगाड़ दिया।माटी ने पुछा ,अरे
कुम्हार तुमने चिलम अच्छी बनाई फिर बिगाड़
क्यों दिया?कुम्हार ने कहा कि अरे माटी पहले मैं
चिलम बनाने की सोच रहा था किन्तु
मेरी मति बदली और अब मैं सुराही या फिर
घड़ा बनाऊंगा।
ये सुनकर माटी बोली,रे
कुम्हार
तेरी तो मति बदली मेरी तो जिंदगी ही बदल
गयी।चिलम बनती तो स्वयं भी जलती और
दूसरों को भी जलाती,अब
सुराही बनूँगी तो स्वयम भी शीतल रहूँगी और
दूसरों को भी शीतल रखूंगी।
यदि जीवन में हम
सभी सही फैसला लें तो हम स्वयम भी खुश रहेंगे एवं
दूसरों को भी खुशियाँ दे सकेंगे
जैसी जाकी बुध्दि है, तैसी कहै बनाय।
ताको बुरो न मानिए, लेन कहाँ सो जाय।।
भावार्थ
रहीम कहते हैं कि जैसी जिसकी बुध्दि होती है वह वैसी बात
करता है अर्थात सज्जन लोग सभी को शीतलता दे ऐसी करते हैं तो कुटील पुरूष की बोली कुटीलता लिये होती है हमें ऐसे व्यक्तियों का बुरा नहीं मानना
चाहिये क्योकिं सद् वचन तो ह्रदय से प्रस्फुटित होते है उन्हें
लेने कहीं जाना थोङे ही पङता है